Saturday, July 26, 2008

भूख

संसार रुपी सागर में
तिरते हैं जन
लेकर भूखी आंतें
और प्यासा मन

आपने देखा है भूख को?
उसका सम्बन्ध जिजीविषा से है
किंतु भूख के रूप हैं अनेक
यह तो सहज है क्यों सबों को
लगती है रोटियों की भूख
किंतु यदि लग जाए भूख
दौलत की,सफलता की
मान सम्मान की, इर्ष्या की
तो क्या हो?
सच तो यह की हम सब
अलग अलग तरह की भूख से
परेशान हैं,बदहाल हैं और
अपनी अपनी भूख को
पोसने और पालने के लिए
विवश हैं
लेकिन हमें कभी
समानता, इमानदारी , सच्चाई
की भूख नहीं जगती
क्या हो गया इन मनोभावों का
इर्ष्या,निंदा की भूख
से परेशान हैं
इसी को मजे से मिटा मिटा कर
अपने जीवन को
सुखद बनाना चाहते हैं







No comments: