Tuesday, December 23, 2008

एकता

जन मन की पुकार सुनो
हो सके तो सीत्कार सुनो
सारे जहाँ से अच्छा हमारे देश में ,
गोलियों की दहाड़ सुनो
कुछ तो याद करो राम को
कृष्ण, गौतम बुद्ध, गाँधी को
भौतिकता की अंधी दौड़ में
शान्ति की पुकार सुनो
बांटों न देश को खंड-खंड
बांटों न मनुष्य को जाति-जाति
हो सके तो जोड़ो सबों को
एकता की पुकार सुनो
जनमन की पुकार सुनो।

भरमाना

मन हुलास और चंचल घडियाँ
ऐसे जाएँ बीते-बीते
तुम हो पास और चंचल घडियाँ
क्षण-क्षण जाएँ बीते-बीते।
ऐसे रहना पास तुम्हारे
मन को खूब भाता है
जीवन में उमंग भर जाता
मन प्रसन्न हो जाता है।
मिलन क्षण और दौड़ती घडियाँ
कैसे जाएँ बीते-बीते
तुम हो पास और चंचल घडियाँ
क्षण-क्षण जाएँ बीते-बीते।
मानो हो जीवन की संध्या
कुछ ही क्षण में जाना हो
बेला तुमसे मिलने की
कुछ पल का भरमाना हो।
जीने की आस और उन्मन घडियाँ
कैसे जाएँ बीते-बीते
तुम हो पास और चंचल घडियाँ
क्षण-क्षण जाएँ बीते-बीते।