Wednesday, July 2, 2008

चिकने घडे

हमसब है चिकने घडे
कुछ भी न पल्ले पड़ता है
न बसंत न मदन न कोई और
अपना ध्यान आकर्षित करता है
हाय हाय से पीड़ित हम
और अधिक और अधिक
कब होंगे संतुष्ट पता नहीं
धरती आकाश चाँद तारे
सब हो ज्ञान हमारे नाम
तब भी नहीं
क्यूंकि
फ़िर भी बचता है पाताल
जिसे पाने के लिए हम होंगे
व्यथित दुखी

No comments: