हे राम तुमसे क्या कहूं
इस विनाश की बेला में
कैसे मैं मौन गहूं
कबसे हो गए महलों के वासी
जाना था तुमको
हमने वनवासी जिस राज अयोध्या
का तुमने
छन भर में परित्याग किया
उस राज अयोध्या में तुमने भीषण नर संघार किया
राज तो राज सीता को भी
छोड़ा है तुमने तृणवत
इस अयोध्या की भूमि को
छोड़ ना सके कृपणवत
हो गए कब से इतने निर्बल
डर डर के रहने लगे
अपनी सुरक्षा के लिए तुमने
पहरेदारों की सेना खड़ी किए
ये कैसा परिवर्तन है
ये कैसा चरित्र पतन
त्याग दया की मूर्ति तुम
हो गए आदर्शों का हनन
रचेगा पुनः एक रामायण
कहेगा राम बदल गए
सतयुग त्रेता के राम
कलयुग में स्वार्थी भये
Sunday, June 29, 2008
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