अधिकार का सुख
देता है आनंद
अधिकार छीनने की आशंका
मन को करती निरानंद
मानव मन की ईच्छा ने सारा इतिहास रचा है
प्रवाह काल का उथल पुथल को
सहता ही चला है
जब सदवृतियाँ हुई तिरोहित कुवृतियों का राज हो व्यथित मन जाने क्या सोचे
कब किस किससे काज हो
है जीवन संग्राम भयंकर
सभी इसमे त्रस्त हैं
लेकिन दूसरों की टांगे खीचने में ही
सारे व्यस्त हैं
कठिन जिन्दगी कठिन जीवन कठिन सारे क्रिया कलाप
कठिन से कठिनतर है संयमित रखना अपने आप
सबके साथ मिलकर रहना
और कठिन है भाई
इसीलिए तो होती आई दुनिया में लड़ाई
Sunday, June 29, 2008
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