Sunday, June 29, 2008

अधिकार

अधिकार का सुख
देता है आनंद
अधिकार छीनने की आशंका
मन को करती निरानंद
मानव मन की ईच्छा ने सारा इतिहास रचा है
प्रवाह काल का उथल पुथल को
सहता ही चला है
जब सदवृतियाँ हुई तिरोहित कुवृतियों का राज हो व्यथित मन जाने क्या सोचे
कब किस किससे काज हो
है जीवन संग्राम भयंकर
सभी इसमे त्रस्त हैं
लेकिन दूसरों की टांगे खीचने में ही
सारे व्यस्त हैं
कठिन जिन्दगी कठिन जीवन कठिन सारे क्रिया कलाप
कठिन से कठिनतर है संयमित रखना अपने आप
सबके साथ मिलकर रहना
और कठिन है भाई
इसीलिए तो होती आई दुनिया में लड़ाई

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