एक क्षत विक्षत अंगो वाला भिक्छुक
अपने नासिका विहीन मुख एवं
ऊँगली विहीन हाथ पाव लिए
दान के लिए कटोरा फैलता है
अपने शरीर की रक्षा हेतु
तत्परता से पार कर जाता है सड़कें
जिजीवषा की प्यास उसे भी भरमाती है
इतनी विकृतियों के बाद भी
जीवन का लुभावना रूप दिखाती है
Monday, October 13, 2008
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3 comments:
इतनी विकृतियों के बाद भी
जीवन का लुभावना रूप दिखाती है
यह एक सत्य है।बढिया रचना लिखी।बधाई।
param satya
Very very nice shayari thanks for sharing I loved it
Shayari mehfil
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