निर्दयी क्रूर काल ने
बनाया था एक नादिरशाह
उसकी क्रूरता से धरती
कांप उठी थी
आज तो हजारों नादिरशाह हैं
लोग पस्त हैं
मानवता त्रस्त है
सभ्य सुसंस्कृत देश में
छिपे नदिरशाहों से ।
नादिरशाह का कत्ले आम
होता था खुले आम
बचने की उपाय अनेक थे
उसकी अधीनता स्वीकारना
इस्लाम कबूल कर लेना
आज के नादिरशाह
करते हैं भीतरघात
न जीवन सुरक्षित है
न इज्जत
पता नहीं किस मुद्दे पर
हो जाए हम पर आघात
ये विवशता त्राषद है
जिस देश का हर व्यक्ति
नादिरशाह बनने लगा हो
उस देश की मानवता का
खुदा हाफिज़ ।
Monday, October 13, 2008
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