बनना देश का
है बटना खेत का
धरती माँ को टुकड़े में काट कर
हम खुश होते हैं अपने को बाँट कर
धरती हंसती है हमारा व्यापार देख
जीवन के उथलपुथल और कारोबार देख
हमारे बाँटने से क्या बंटतीहै धरती
हमारे काटने से क्या कटती है धरती
कटते तो हैं हम अपने परिवार से
अपने बंधु एवं अपने विचार से
हमारा अट्टहास हमारा क्रंदन है
हमारा जीवन एक बंधन है
कितना भी बाँट लें हम धरती
कितना भी बना लें हम बॉर्डर लाइन
लेकिन धरती अगर सचमुच खंडित हो गई
तो क्या बचेंगे हम
खंडन को रोकने के लिए
Tuesday, November 25, 2008
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2 comments:
बेहतरीन!!
बहुत बढिया रचना है।
हमारा जीवन एक बंधन है
कितना भी बाँट लें हम धरती
कितना भी बना लें हम बॉर्डर लाइन
लेकिन धरती अगर सचमुच खंडित हो गई
तो क्या बचेंगे हम
खंडन को रोकने के लिए
बहुत बढिया लिखा है।बधाई।
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