Tuesday, November 25, 2008

दंगा

आज दंगा हो गया
ये शहर नंगा हो गया
सड़कें सुनसान हो गयीं
बस्तियां वीरान हो गयीं
जीवन इसमें खो गया
आतंक का राज हो गया
जीना मुहाल हो गया
मरना कमल हो गया
मनुष्य ने मनुष्य को
करना हलाल शुरू किया
आंखों में दहशत भरे
बच्चों के मुख सूख गए
अपने आँचल से ढके माँ
बच्चों की जिंदगी मनाती रही
हत्यारे खींच कर ले गए
गोद सूनी रह गईं

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत भावपूर्ण रचना है।

mayank sinha said...

acchi rachna he badi maa keep it up

ujala yadav said...

very very nice lines