काल का व्याल नित नए महाभारत का सृजन कर
लीलता रहा सभ्यता संस्कृति और सृष्टि को अनंत काल से
रचता रहा नया इतिहास और बदलता रहा भूगोल को
जिजीविषा शक्लें बदल नित नया खेल दिखाती रहीं
पीसती रही घानी में मानवता लेकिन तृष्णा जवान बनी रही
विचार मूल्य एवं जीवन समय सापेक्ष बन गए
कोई चिरस्थायी चिर नवीन नहीं रह सका
काल रहा नवीन चिरयुवा सब को यौवन हीन बनाता रहा
जिजीविषा को नित नया चोला पहना ,करता रहा व्यवस्था में परिवर्तन
तंत्र को भ्रस्ट कर जीवन को संतप्त कर इठलाता रहा
अव्यवस्था विजय के आगोश में लिपटी इठलाती रही
Tuesday, September 23, 2008
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1 comment:
Aapke vichaar atyanta gahan hain. Is kaal ko bade hi sateek shabdon mein paribhaashit kiya hai aapne.
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