रात्रि भर निपट अंधेरे से गुजरने के बाद ,
दिशाओं के गाल होने लगे लाल ,
प्रियतम के आगमन को गुन ।
दिवस भर संग-साथ रहा ,
हास और परिहास रहा ,
उछले कूदे मौज मनाये ।
आते ही संध्या ,
दिशाएं हो गयीं पलाश ,
विरह की संभावना से त्रस्त ,
धीरे -धीरे ,
पुनः अंधकार में डूब गयीं ।
Wednesday, September 24, 2008
Tuesday, September 23, 2008
काल
काल का व्याल नित नए महाभारत का सृजन कर
लीलता रहा सभ्यता संस्कृति और सृष्टि को अनंत काल से
रचता रहा नया इतिहास और बदलता रहा भूगोल को
जिजीविषा शक्लें बदल नित नया खेल दिखाती रहीं
पीसती रही घानी में मानवता लेकिन तृष्णा जवान बनी रही
विचार मूल्य एवं जीवन समय सापेक्ष बन गए
कोई चिरस्थायी चिर नवीन नहीं रह सका
काल रहा नवीन चिरयुवा सब को यौवन हीन बनाता रहा
जिजीविषा को नित नया चोला पहना ,करता रहा व्यवस्था में परिवर्तन
तंत्र को भ्रस्ट कर जीवन को संतप्त कर इठलाता रहा
अव्यवस्था विजय के आगोश में लिपटी इठलाती रही
लीलता रहा सभ्यता संस्कृति और सृष्टि को अनंत काल से
रचता रहा नया इतिहास और बदलता रहा भूगोल को
जिजीविषा शक्लें बदल नित नया खेल दिखाती रहीं
पीसती रही घानी में मानवता लेकिन तृष्णा जवान बनी रही
विचार मूल्य एवं जीवन समय सापेक्ष बन गए
कोई चिरस्थायी चिर नवीन नहीं रह सका
काल रहा नवीन चिरयुवा सब को यौवन हीन बनाता रहा
जिजीविषा को नित नया चोला पहना ,करता रहा व्यवस्था में परिवर्तन
तंत्र को भ्रस्ट कर जीवन को संतप्त कर इठलाता रहा
अव्यवस्था विजय के आगोश में लिपटी इठलाती रही
Tuesday, September 16, 2008
चिड़या रानी
चिड़ियाँ रानी चिड़ियाँ रानी
क्यूँ करती इतनी शैतानी
घूम घूम कर थक कर के
पी लेती हो ठंडा पानी ।
चूं चूं करके गाती हो
फर फर कर उड़ जाती हो
देख बिखरे चंद दाने
फुदक फुदक चली आती हो ।
तेरे सुंदर पंख निराले
रंग बिरंगे और चमकीले
क्षण क्षण फुदक फुदक तुम
गाती हो गीत रंगीले।
जीवन तेरा सुखमय है
जीवन तेरा है रंगीन
नभ में उड़ने की कला में
तुम पुरी हो प्रवीण।
कभी अपनी प्रवीणता से
मुझे भी परिचित करवाओ
अपने सुंदर पंख सुनहले
कुछ दिन ही मुझको दे जाओ ।
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