Tuesday, November 25, 2008

बंटवारा

बनना देश का
है बटना खेत का
धरती माँ को टुकड़े में काट कर
हम खुश होते हैं अपने को बाँट कर
धरती हंसती है हमारा व्यापार देख
जीवन के उथलपुथल और कारोबार देख
हमारे बाँटने से क्या बंटतीहै धरती
हमारे काटने से क्या कटती है धरती
कटते तो हैं हम अपने परिवार से
अपने बंधु एवं अपने विचार से
हमारा अट्टहास हमारा क्रंदन है
हमारा जीवन एक बंधन है
कितना भी बाँट लें हम धरती
कितना भी बना लें हम बॉर्डर लाइन
लेकिन धरती अगर सचमुच खंडित हो गई
तो क्या बचेंगे हम
खंडन को रोकने के लिए

दंगा

आज दंगा हो गया
ये शहर नंगा हो गया
सड़कें सुनसान हो गयीं
बस्तियां वीरान हो गयीं
जीवन इसमें खो गया
आतंक का राज हो गया
जीना मुहाल हो गया
मरना कमल हो गया
मनुष्य ने मनुष्य को
करना हलाल शुरू किया
आंखों में दहशत भरे
बच्चों के मुख सूख गए
अपने आँचल से ढके माँ
बच्चों की जिंदगी मनाती रही
हत्यारे खींच कर ले गए
गोद सूनी रह गईं